आस्था या अंधविश्वास


    आदिशक्ति मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है. आश्विन शुक्लपक्ष प्रथमा को कलश की स्थापना के साथ ही भक्तों की आस्था का प्रमुख त्यौहार शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाता है. नौ दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में मां भगवती के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा की जाती है. यह महापर्व सम्पूर्ण भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. पौराणिक कथानुसार महाराक्षस रावण का वध करने के लिए भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने शारदीय नवरात्र का व्रत किया था और तभी जाकर उन्हें विजयश्री की प्राप्ति हुई थी. आस्थावान भक्तों में मान्यता है कि नौ दिनों तक माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना करने वाले पर से नवग्रहों के प्रकोप शांत हो जाता है और जीवन में उसे सुख, शांति, यश और समृद्धि की प्राप्ति होती है.शारदीय नवरात्र शुभारम्भ हो गया और जिले के समस्त मंदिरों में माँ की आराधना की जा रही है । वही शेखपुरा जिले के महावतपुर गाँव में पच्चीस वर्षीय मुकेश कुमार सिंह ने माँ के चरणों में जमीन में गढ़ा बनाकर पुरे नौ दिनों तक निर्जल्ला उपवास रख कर अपने सीने पर कलश की स्थापना किया है । जो पुरे शेखपुरा जिले में चर्चा का विषय बना है.मुकेश की माने तो माँ भगवती ने उन्हें सपने में आकर कुछ करने की प्रेरणा दिया जिसके बाद उसने अपने सीने पर कलश स्थापना कर माँ की भक्ति में पुरे नौ दिनों तक उपवास रखता है । जब मुकेश ने अपने सीने पर कलश की स्थापना किया है , अब इसे आस्था कहें या अंधविश्वास लेकिन पुरे नवरात्र के दौरान इसको देखने के लिए श्रधालुओं की भीड़ लगी रहती है । अब इसे आस्था कहें या अंधविश्वास लेकिन मुकेश द्वारा किया जा रहा यह उपासना उन ऋषि मुनियों की याद दिलाता है जो कालांतर में विश्व कल्याण के लिए हठयोग किया करते थे । ।

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