चन्दन कुमार/शेखपुरा। यदि आपको को पटना जाना हो तो आपकी जुवां पर एक ही नाम आता है सतपाल। चूंकि सतपाल बस पटना यात्रा करनेवालो के लिए दिनचर्या बन गयी है। इसकी मुख्य वजह सर्विस और नॉन स्टॉप परिचालन सेवा। यही कारण है आज शेखपुरा में सतपाल बस लोगो की दिलो में एक अमिट छाप छोड़ दिया है। सतपाल बस सर्विस ने यात्रियों को गर्मी से निजात दिलाने के लिए शेखपुरा से पटना के लिए नॉन स्टॉप एसी बस सेवा का परिचालन शुरू किया है। बस ऑनर सतपाल यादव ने कहा कि भीषण गर्मी से यात्रियों को राहत दिलाने के लिए सतपाल बस सर्विस सेवा द्वारा एसी बस सेवा शुरू किया गया है। सतपाल की एसी बस सेवा शेखपुरा से पटना के लिए सुबह पांच बजे तथा पटना से शेखपुरा के लिए दोपहर दो बजे चलेगी। जेनरल बस भाड़े के अतिरिक्त मात्र एसी बस का भाड़ा 140 रुपये निर्धारित किया गया है। उन्होंने आगे बताया कि यात्रियों की सेवा के लिए सतपाल हमेशा संकल्पित रहेगा।
चन्दन कुमार/शेखपुरा। जिले के अरियरी प्रखंड अंतर्गत फरपर आयोजित होने वाले अखिल भारतीय माँ वत्सला भवानी मेला की तैयारी शुरू कर दी गई है। दो दिवसीय मेला का आयोजन 8 एवं 9 अप्रैल को किया जाना है। गौरतलब है कि बर्षों से प्रतिवर्ष आयोजित हो रहे इस मेले के दौरान हजारों की तादाद में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है। इस मेले के दौरान रंगारंग और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बनता है। मेले के आयोजन के साथ- साथ मंदिर निर्माण को लेकर 26 मार्च को मेला समिति की बैठक भी रखी गई है। मेला समिति के सदस्यों ने बताया कि हर वर्ष की भांति इस बार भी भव्य मेले का आयोजन किया जाएगा और इस बार भी लोगों के हुजूम उमड़ने का कयास लगाया जा रहा है।
दशहरा पर देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करने का शेखपुरा में इतिहास ढाई सौ साल पुराना है। बताया जाता है कि शहर के स्वर्णकारों ने सबसे पहले सन 1760 के आसपास मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की थी। तब यहां के स्वर्णकार समाज के जाने-माने दाहू सोनार के परदादा ने प्रतिमा स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब वर्तमान में दाहू सोनार का कोई सदस्य शेखपुरा में नहीं है। सबसे पुरानी प्रतिमा के कारण सोनरवा दुर्गा को शेखपुरा की बड़ी महारानी का दर्जा प्राप्त है। पूजा समिति से जुड़े अशोक कुमार स्वर्णकार बताते हैं कि आजादी के काफी साल पहले इस प्रतिमा के विसर्जन जुलूस की शोभा यात्रा को लेकर विवाद हुआ था तो इसका निर्णय इग्लैंड की तत्कालीन महारानी एलिजावेथ ने किया था तथा पूजा समिति के पक्ष का समर्थन किया था। सबसे पहले यह प्रतिमा मड़पसौना में स्थापित की गयी थी। बाद में स्वर्णकार समाज के लोगों ने 1960 के दशक के कमिश्नरी बाजार में स्थायी स्थान दे दिया।
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